मधुर-मधुर मेरे दीपक जल: 10th Class Hindi Chapter 6
प्रश्न: प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर: प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ आत्मा का प्रतीक है और ‘प्रियतम’ परमात्मा का प्रतीक है। कवयित्री अपने आत्मा रूपी दीपक को जलाकर अपने आराध्य देव अर्थात् प्रियतम परमात्मा तक जाने के मार्ग को प्रशस्त करना चाहती है। यह आत्मा को दीपक कवयित्री की आस्था का दीपक है।
प्रश्न: दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों ?
उत्तर: दीपक से निरंतर जलते रहने का आग्रह किया जा रहा है। दीपक स्वयं जलता है परंतु दूसरों का मार्ग प्रकाशित कर देता है। वह त्याग और परोपकार का संदेश देता है। दीपक से हर परिस्थिति में चाहे आँधी हो या तूफ़ान, यहाँ तक अपने अस्तित्व को मिटाकर भी जलने का आह्वान किया जा रहा है। कवयित्री के लिए प्रभु ही सर्वस्व है। इसलिए वह अपने हृदय में प्रभु के प्रति आस्था और भक्ति का भाव जगाए रखना चाहती है। – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
प्रश्न: ‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
उत्तर: जिस प्रकार पतंगा दीपक पर मोहित होकर अपने आप को रोक नहीं पाता और राख हो जाता है, उसी प्रकार संपूर्ण विश्व अर्थात् मनुष्य मात्र अपने जीवन को विषय-विकारों, लोभ, मोह तथा धन संग्रह के आकर्षण और आसक्ति में हँसकर जल जाना चाहता है।
प्रश्न: आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है:
- शब्दों की आवृत्ति पर।
- सफल बिंब अंकन पर।
उत्तर: इस कविता की सुंदरता इन दोनों में से किसी एक पर निर्भर नहीं है न ही दोनों में से किसी एक की विशेषताओं पर। किसी भी कविता की सुंदरता अनेक कारकों पर निर्भर होता है। इस कविता में इन दोनों विशेषताओं का कुछ-न-कुछ योगदान अवश्य है।
- शब्दों की आवृत्ति-कविता में अनेक शब्दों की आवृत्ति हुई है
– मधुर मधुर मेरे दीपक जल।
– युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
– पुलक-पुलक मेरे दीपक जल।
– सिहर-सिहर मेरे दीपक जल।इनसे प्रभु-भक्ति का भाव तीव्र हुआ है। उसमें और अधिक प्रसन्नता, उत्साह और उमंग से निरंतर जलते रहने का भाव प्रकट हुआ है। - सफल बिंब अंकन-इस कविता में बिंबों को सफल अंकन हुआ है, जैसे
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम-सा धुल रे मृदु तन।इसमें कवयित्री की भावनात्मक कोमलता प्रकट हुई है। दोनों विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि दोनों ही कारण कविता को सुंदर व प्रभावी बनाने में सक्षम हैं। शब्दों की आवृत्ति से कविता में संगीतात्मकता आ गई है। और बिंबों का अंकन भावबोध में सहायक सिद्ध हुआ है।
प्रश्न: कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही है?
उत्तर: कवयित्री अपने परमात्मा रूपी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं ताकि परमात्मा तक पहुँच सकें। यदि वहाँ तक पहुँचने का मन रूपी मार्ग अंधकार से पूर्ण है, तो उनकी यह चाह पूरी नहीं हो सकती। इस अंधकार को मिटाना परम आवश्यक है। अतः वे अपने परमात्मा रूपी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं।
प्रश्न: कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर: आकाश में असंख्य, अनगिनत तारे होते हैं परंतु वह संसार भर में प्रकाश नहीं फैलाते। प्रकाश तो सूर्य की किरणों में ही होता है। कितने ही स्नेहहीन दीपक हैं जो प्रकाश नहीं देते अर्थात कितने ही मनुष्यों के हृदय में दया, प्रेम, करुणा, ममता आदि भाव नहीं होते। कवयित्री को संसार के प्राणियों में प्रभु-भक्ति का अभाव प्रतीत होता है। इसी भाव को व्यक्त करने के लिए वह प्रतीकों का सहारा लेती हैं। उनके लिए नभ’ है-संसार, ‘तारे हैं लोग, ‘स्नेह’ है-भक्ति का भाव । अतः वह संसार को भक्ति शून्य बताने के लिए आकाश के तारों को स्नेहहीन कह रही हैं।
प्रश्न: पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
उत्तर: पतंगा पश्चाताप करते हुए क्षोभ व्यक्त कर रहा है कि वह दीपक की लौ में आत्मसातू क्यों नहीं हुआ? पतंगा दीपक से बहुत प्यार करता है इसलिए उसकी लौ पर मर-मिटना चाहता है, लेकिन जब वह ऐसा करने में असफल होता है, तो वह पछतावा करते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त करता है। इसका भाव यह है कि विश्व के प्रेमी जन भी परमात्मा रूपी लौ में जलकर अपना अस्तित्व विलीन करना चाहते हैं।
प्रश्न: कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से ‘मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस’ जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवयित्री ने अपने आस्था रूपी दीपक को हर बार अलग-अलग ढंग से जलने के लिए कहा है। कभी मधुर-मधुर, कभी पुलक-पुलक और कभी विहँस-विहँस खुशी को व्यक्त करने के लिए कहती है। ‘मधुर-मधुर’ में मौन मुस्कान है। ‘पुलक-पुलक’ में हँसी की उमंग है। कवयित्री चाहती है कि उसकी भक्ति भावना में प्रसन्नता बनी रहे। चाहे कैसी भी स्थिति क्यों न हो आस्था रूपी आध्यात्मिक दीपक सदैव जलता रहे और परमात्मा का मार्ग प्रशस्त करे। कवयित्री के अनुसार परमात्मा को पाने के लिए भक्त को अनेक अवस्थाओं को पार कर भिन्न-भिन्न भावों को अपनाना पड़ता है। उसे आस्था रूपी दीपक प्रज्वलित रखना पड़ता है।
प्रश्न: नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
- ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
- सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
- बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
- कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर:
- स्नेहहीन दीपक नभ के तारों को कहा है, जिसका तात्पर्य है कि आकाश में अनगिनत चमकने वाले तारे स्नेहहीन से प्रतीत होते हैं, क्योंकि ये सभी प्रकृतिवश, यंत्रवत् होकर अपना कर्तव्य निभाते हैं। इनमें कोई प्रेम नहीं है तथा परोपकार का कोई भाव नहीं है अर्थात् ये ईश्वर के प्रेम से हीन हैं। इनमें ईश्वर के लिए तड़प नहीं है।
- सागर को ‘जलमय’ कहने का तात्पर्य है कि वह सदा जल से भरा रहता है। उसका हृदय इसलिए जलता है, क्योंकि वह प्रचंड गरमी में तपता है, जलता है और वाष्प बनकर, बादल बनकर बरसता है अर्थात् उसके हृदय में सदा हलचल होती रहती है।
- बादलों की यह विशेषता बताई गई है कि इनमें जल के साथ अनंत मात्रा में बिजली और प्रकाश भी भरा हुआ है।
- कवयित्री ने दीपक को विहँस-विहँसकर जलने के लिए इसलिए कहा है ताकि ईश्वर का पथ आलोकित हो और प्रत्येक प्राणी इसपर चल पड़े।
प्रश्न: क्या ‘मीराबाई और अधिनिक भीरा’ महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युविक तयाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
- मीरा अपने आराध्य देव से मिलने के लिए उनकी दासी बनना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि कृष्ण आएँ और उनके क्लेशों को हरें। मीरा अपने आराध्य के दर्शनों की प्यासी हैं। महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य की प्रतीक्षा में अपने आस्था रूपी दीपक को जलाकर उनके पथ को आलोकित करती हैं। मीरा अपने आपको इस अखंड-अनंत में विलीन कर देना चाहती हैं।
- मीराबाई ने सहज एवं सरल भावों को जनभाषा के माध्यम से प्रस्तुत किया है जबकि महादेवी ने विभिन्न प्रकार के बिंबों का प्रयोग किया है।
- मीरा का प्रियतम इस लोक का प्राणी, सगुण एवं साकार रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होता है जबकि महादेवी का प्रियतम इस लोक का प्राणी नहीं हैं जो प्राप्त किया जा सके।
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए:
प्रश्न: दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु ल गल!
उत्तर: वयित्री कहती हैं-हे मेरे मन रूपी दीपक! तू पूरी तरह से समर्पित होकर चारों ओर प्रेरणा का स्रोत बनकर असीमित प्रकाश फैला। तू अपना सर्वस्व न्योछावर कर स्वेच्छा से रोमांचित होकर खुशी से परोपकार हेतु दूसरों का पथ आलोकित कर।
प्रश्न: युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षा प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
उत्तर: कवयित्री हृदये के आस्थारूपी दीपक को प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल जलने को कहती है, अर्थात् जिस प्रकार दीपक प्रत्येक क्षण, प्रत्येक पल जलता हुआ जीवन का पथ आलोकित करता हुआ चलता है, उसी प्रकार आराध्य देव को पथ-आलोकित करता हुआ तथा अपने अंतर में व्याप्त अंधकार को नष्ट करता हुआ चल। कवयित्री का प्रियतम संसारी मानव न होकर अज्ञान व रहस्यमयी है।
प्रश्न: मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!
उत्तर: कवयित्री कहती हैं कि हे मन रूपी दीपक! तू मोम की तरह पूरी तरह से गलकर अर्थात् पूर्ण रूप से समर्पित होकर, स्वेच्छा से रोमांचित होकर चारों ओर अपना प्रकाश फैला। जिस तरह मोम जल-जलकर दूसरों को प्रकाश प्रदान करता है, ठीक उसी तरह कवयित्री भी अपनी ईश्वरीय भक्ति द्वारा सभी को ईश्वर की भक्ति का पथ दिखाना चाहती हैं।
प्रश्न: कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे-पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
उत्तर: पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वाले कविता में आए अन्य शब्द-मधुर-मधुर, युग-युग, गल-गल, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस।
प्रश्न: इस कविता में जो भाव आए हैं, उन्हीं भावों पर आधारित कवयित्री द्वारा रचित कुछ अन्य कविताओं का अध्ययन करें; जैसे:
- मैं नीर भरी दुख की बदली
- जो तुम आ जाते एकबार
ये सभी कविताएँ ‘सन्धिनी’ में संकलित हैं।
उत्तर:
- ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता पुस्तकालय से प्राप्त कर छात्र स्वयं पढ़ें।
- जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा कितने संदेश।
पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार।
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पद पखार।हँस उठते पल में आर्द्र नयन,
धुल जाता ओठों से विषाद,
छा जाता जीवन में वसंत,
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देती सर्वस्व वार।
जो तुम आ जाते एक बार।
प्रश्न: महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर: भक्तिकालीन कवयित्री मीरा के पदों एवं गीतों में अपने आराध्य श्रीकृष्ण से न मिल पाने की जो पीड़ा है और उनसे मिलने के तरह-तरह के प्रयास किए गए हैं, उनके रूप-सौंदर्य पर मोहित होकर उनकी अनन्य भक्ति करते हुए उनकी चाकरी करने, नौकरानी बनने और दासी बनने तक के विभिन्न उपाय किए गए हैं। उसी प्रकार महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य प्रभु से मिलने के लिए उनकी भक्ति करती हैं और आस्था का दीप जलाए रखना चाहती हैं। महादेवी के गीतों में भी अपने प्रियतम से न मिल पाने की पीड़ा स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है। अतः महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहना पूर्णतया उपयुक्त है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: कवयित्री अपने प्रियतम का पथ किस प्रकार आलोकित करना चाहती है?
उत्तर: कवयित्री अपने प्रियतम से आध्यात्मिक लगाव, श्रद्धा एवं आस्था रखती है। इसी आस्था का दीप वह हर-पल, हर क्षण, हर दिन जलाए रखना चाहती है। इसी आस्था रूपी दीप के प्रकाश के सहारे वह अपने प्रभु तक पहुँचना चाहती है। इस तरह वह अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती है।
प्रश्न: कवयित्री आस्था का दीप किस तरह जलने की अभिलाषा करती है?
उत्तर: कवयित्री की अभिलाषा है कि उसकी आस्था का दीप जलकर अपना सौरभ उसी तरह चारों ओर बिखरा दे जिस तरह सूर्य की किरणें चारों ओर भरपूर प्रकाश फैला जाती हैं। आस्था का यह दीप जलकर चारों ओर अपरिमित उजाला फैला दे, भले ही उसके लिए अपना एक-एक अणु गला देना पड़े अर्थात् वह अपना अस्तित्व नष्ट कर दे।
प्रश्न: विश्व के शीतल-कोमल प्राणी क्या भोग रहे हैं और क्यों ?
उत्तर: विश्व के शीतल और कोमल प्राणी अर्थात् जिनकी आस्था प्रभु के चरणों में नहीं है वे प्रकाश पुंज परमात्मा से आस्था एवं भक्ति की चिनगारी माँग रहे हैं ताकि वे भी आस्था का दीप जलाकर अपना जीवन प्रकाशमय कर सकें। वे भी प्रभु के प्रति आस्थावान बन सकें।
प्रश्न: विश्व-शलभ को किस बात का दुख है?
उत्तर: विश्व-शलभ को इस बात का दुख है कि क्यों प्रभु के चरणों में अपनी आस्था और श्रद्धी पैदा नहीं कर पाया। वह परमात्मा के ज्योतिपुंज में अपना अहंकार, मोह और अज्ञानता क्यों नहीं जला पाया। यदि वह परमात्मा से एकाकार होकर इनका शमन कर लेता तो उसे भी प्रभु का सान्निध्य प्राप्त हो जाता।
प्रश्न: कवयित्री ने ‘जलमय सागर’ किसे कहा है? उसका हृदय क्यों जलता है?
उत्तर: कवयित्री ने जलमय सागर उन प्राणियों को कहा है जिनका मन रूपी सागर ईर्ष्या, तृष्णा, मोह आदि की सांसारिकता से लबालब भरा हुआ है और आध्यात्मिक आस्था का अभाव है। इसके अभाव में मन इधर-उधर भटकता हुआ सांसारिकता में डूबा रहता है। आस्थाहीन प्राणियों का मन ई और तृष्णा की आग में जलता रहता है।
प्रश्न: कवयित्री अपने जीवन का अणु-अणु गलाकर क्या सिद्ध करना चाहती है?
उत्तर: कवयित्री अपने प्रियतम के प्रति पूरी तरह समर्पित है। इसके लिए वह अपना अहम भाव पूरी तरह समाप्त करने के लिए इस अहम का एक-एक अणु गला देना चाहती है। इसके द्वारा वह यह सिद्ध करना चाहती है कि अपने प्रियतम (परमेश्वर) के प्रति उसका समर्पण अनन्य है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता के आधार पर कवयित्री की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में कवयित्री की आध्यात्मिकता का वर्णन है। वह अपने प्रभु के चरणों में आस्था का दीपक जलाती है और अनवरत जलाए रखना चाहती है। वह इस दीपक से कभी मधुर भाव से जलने के लिए कहती है तो कभी पुलक-पुलककर और कभी विहँस-विहँस कर। वह अपने दीपक की लौ में अपने अहम् को जलाकर अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण, प्रकट करती है। संसार के लोग सांसारिक सुखों में डूबकर ईष्र्या और तृष्णा के कारण जल रहे हैं। कवयित्री चाहती हैं कि वे भी प्रकाश पुंज से चिनगारी लेकर भक्ति की लौ जलाएँ। वह अपने प्रियतम का पथ आलोकित करने के लिए आस्था का दीपक सदा-सदा के लिए जलाकर भक्ति भावना से सारा संसार महकाना चाहती है।
प्रश्न: ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ के आधार पर विश्व-शलभ की स्थिति स्पष्ट कीजिए। ऐसे लोगों के प्रति कवयित्री की क्या सोच है?
उत्तर: ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता से ज्ञात होता है कि विश्व रूपी पतंगा अपनी स्थिति पर पछताता है। वह दुख प्रकट करते हुए कहता है कि वह उस प्रभु भक्ति की आस्था रूपी दीपक की ज्वाला से एकाकार न हो सका। वह इस ज्वाला में अपना अहंकार न जला पाने से अब भी अहंकार, ईर्ष्या, अंधकार, मोह, तृष्णा आदि में डूबा हुआ कष्ट भोग रहा है। आस्था एवं आध्यात्मिकता के अभाव में वह प्रभु भक्ति से दूर रह गया और न भक्ति का आनंद उठा सका और न प्रभु का सान्निध्य प्राप्त कर सका। ऐसे लोगों के बारे में कवयित्री सोचती है कि उन्हें भी प्रकाशपुंज से चिनगारी प्राप्त कर अपनी आस्था का दीप जला लेना चाहिए।