नौबतखाने में इबादत 10th Class Hindi क्षितिज भाग 2 (गद्य खंड) Chapter 16
प्रश्न: शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर: शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किए जाने के मुख्यतया दो कारण हैं:
- शहनाई बजाने में जिस रीड का प्रयोग किया है वह डुमराँव में ही सोन नदी के किनारे मिलती है। इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है।
- शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली डुमराँव ही है।
प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई की ध्वनि मंगलदायी मानी जाती है। इसका वादन मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। बिस्मिल्ला खाँ अस्सी बरस से भी अधिक समय तक शहनाई बजाते रहे। उनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रूप में की जाती है। उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं विश्व में लोकप्रिय बनाया।
प्रश्न: सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर: सुषिर वाद्यों से अभिप्राय उन वाद्यों से है जिनमें सूराख होते हैं और जिनमें फेंक मारकर बजाया जाता है। शहनाई, बाँसुरी, श्रृंगी आदि सुषिर वाद्य के अंतर्गत आते हैं।
इन सुषिर वाद्यों में शहनाई सबसे सुरीली और कर्ण प्रिय आवाज वाली होती है, इसलिए उसे ‘सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई।
प्रश्न: आशय स्पष्ट कीजिए
- ‘फटा सुर न बख्। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी’।
- ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर:
- बिस्मिल्ला खाँ को दुनिया उनकी शहनाई के कारण जानती है, लुंगी के कारण नहीं। वे खुदा से हमेशा सुरों का वरदान माँगते रहे हैं। उन्हें लगता है कि अभी वे सुरों को बरतने के मामले में पूर्ण नहीं हो पाए हैं। यदि खुदा ने उन्हें ऐसा सुर और कला न दी होती तो वे प्रसिद्ध न हो पाते। फटे सुर को ठीक करना असंभव है पर फटे कपड़े आज नहीं तो कल सिल ही जाएँगे।
- बिस्मिल्ला खाँ महान कलाकार हैं। उन्हें अभिमान छू भी न गया है। सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी वे खुदा से ऐसा सुर माँगते हैं जिसे सुनकर लोग आनंदित हो उठे। इस आनंद से उनका रोम-रोम भीग जाए और उनकी आँखों से आनंद के आँसू बह निकले।
प्रश्न: काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर: समय के साथ-साथ काशी में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं जो बिस्मिल्ला खाँ को दुखी करते हैं, जैसे
- पक्का महाल से मलाई बरफ़ वाले गायब हो रहे हैं।
- कुलसुम की कचौड़ियाँ और जलेबियाँ अब नहीं मिलती हैं।
- संगीत और साहित्य के प्रति लोगों में वैसा मान-सम्मान नहीं रहा।
- गायकों के मन में संगतकारों के प्रति सम्मान भाव नहीं रहा।
- हिंदू-मुसलमानों में सांप्रदायिक सद्भाव में कमी आ गई है।
प्रश्न: पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि
- बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
- वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।
उत्तर:
- बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म अर्थात् मुस्लिम धर्म के प्रति समर्पित इनसान थे। वे नमाज़ पढ़ते, सिजदा करते और खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते थे। इसके अलावा वे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर दस दिनों तक शोक प्रकट करते थे तथा आठ किलोमीटर पैदल चलते हुए रोते हुए नौहा बजाया करते थे। इसी तरह वे काशी में रहते हुए गंगामैया, बालाजी और बाबा विश्वनाथ के प्रति असीम आस्था रखते थे। वे हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित शास्त्रीय गायन में भी उपस्थित रहते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
- बिस्मिल्ला खाँ हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्हें धार्मिक कट्टरता छू भी न गई थी। वे खुदा और हज़रत इमाम हुसैन के प्रति जैसी आस्था एवं श्रद्धा रखते थे। वैसी ही श्रद्धा एवं आस्था गंगामैया, बालाजी, बाबा विश्वनाथ के प्रति भी रखते थे। वे काशी की गंगा-जमुनी संस्कृति में विश्वास रखते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इनसान थे।
प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ की संगीत साधना को समृद्ध करने वाले व्यक्ति और घटनाएँ निम्नलिखित हैं:
- बिस्मिल्ला खाँ अपने नाना को बचपन से मीठी शहनाई बजाते देखा करते थे। उनके चले जाने के बाद बालक अमीरुद्दीन उसी शहनाई को ढूँढ़ता।
- अपने मामूजान के सम पर आने पर अमीरुद्दीन पत्थर फेंककर दाद दिया करता था।
- वे रसूलनबाई और बतूलनबाई का गायन सुनकर इतने प्रभावित हुए कि संगीत सीखने की दिशा में दृढ़ कदम उठा लिया।
- वे कुलसुम हलवाइन के कचौड़ियाँ तलने में संगीत की अनुभूति करते थे।
नौबतखाने में इबादत: रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएँ हैं, जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुआ। इन विशेषताओं में प्रमुख हैं:
- सादाजीवन उच्च विचार: बिस्मिल्ला खाँ अत्यंत सादा जीवन जीते थे। वे लुंगी पहने ही आगंतुकों से मिलने चले आते थे, परंतु उनके विचार अत्यंत उच्च थे।
- निरभिमानी: सफलता की चोटी पर पहुँचने के बाद भी बिस्मिल्ला खाँ को अभिमान छू भी न गया था। इसके बाद भी खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते रहते थे।
- धार्मिक सदभाव: बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति समर्पित होकर नमाज़ अदा करते थे और हजरत इमाम हुसैन के बलिदान के प्रति दस दिन का शोक मनाते थे तो गंगा मइया, बाबा विश्वनाथ और बालाजी के प्रति भी असीम आस्था रखते थे।
- परिश्रमशील स्वभाव: बिस्मिल्ला खाँ अपने जीवन के अस्सी बरस पूरे करने के बाद भी रियाज़ करते थे और संगीत साधना के प्रति समर्पित रहते थे।
- सीखने की ललक: बिस्मिल्ला खाँ की एक विशेषता यह भी है कि उनमें सीखने की एक ललक थी। वे शहनाई के सर्वश्रेष्ठ कलाकार होने पर भी खुद को पूर्ण नहीं मानते थे। वे हमेशा सीखने के लिए लालायित रहते थे।
प्रश्न: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का अत्यंत गहरा जुड़ाव था। इस महीने में शिया मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति शोक मनाते हैं। इस समय वे न शहनाई बजाते हैं और न किसी संगीत कार्यक्रम में भाग लेते हैं। आठवीं तारीख को वे करीब आठ किलोमीटर पैदल रोते हुए नौहा बजाते जाते हैं। वे इस दिन कोई राग नहीं बजाते हैं। इस प्रकार वे एक सच्चे मुसलमान की भाँति मुहर्रम से सच्चा लगाव रखते हैं।
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प्रश्न: अमीरुद्दीन के मामा की दिनचर्या की शुरुआत कैसे होती थी?
उत्तर: अमीरुद्दीन के मामा देश के जाने-माने शहनाई वादक थे। उनकी दिनचर्या की शुरुआत बालाजी के मंदिर से होती थी। वे सर्वप्रथम इसी मंदिर की ड्योढ़ी पर आ बैठते और रोज बदल-बदलकर मुल्तानी, कल्याण, ललित और कभी भैरव राग सुनाते रहते थे। इसके बाद ही वे विभिन्न रियासतों के दरबार में शहनाई बजाने जाया करते थे।
प्रश्न: रीड क्या है? शहनाई के लिए इसकी क्या उपयोगिता है?
उत्तर: रीड, एक प्रकार की घास ‘नरकट’ से बनाई जाती है। यह बिहार के डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है। रीड अंदर से पोली खोखली होती है। इसी के सहारे शहनाई में हवा फेंकी जाती है। इसी की मदद से शहनाई बजती है। यदि रीड न हो तो शहनाई बजना कठिन हो जाएगा।
प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ बालाजी मंदिर क्यों जाया करते थे? वे किस रास्ते से मंदिर जाया करते थे?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के रियाज़ के लिए प्रतिदिन नियमित रूप से बालाजी मंदिर जाया करते थे। वे मंदिर तक पहुँचने के लिए रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से जाने वाले रास्ते का प्रयोग करते थे। उन्हें इस रास्ते से जाना अच्छा लगता था। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी दादरा, कभी टप्पे आदि सुनते हुए वे मंदिर पहुँचते थे।
प्रश्न: इतिहास में शहनाई का उल्लेख किस तरह मिलता है?
उत्तर: वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। संगीत शास्त्रों में इसे सुषिर वाद्य के रूप में गिना जाता है। अरब देश में नरकट या रीड वाले वाद्य यंत्रों को नये कहा जाता है। शहनाई को सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि प्रदान की गई है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तानसेन द्वारा रचित बंदिश में शहनाई आदि का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ अपने खुदा से सजदे में क्या माँगते हैं? इससे उनके व्यक्तित्व की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ अपनी संगीत कला को समर्पित कलाकार थे। वे अपनी संगीत कला में निखार लाने के लिए खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगा करते थे। वे सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते थे और बार-बार सच्चे सुर की माँग करते। थे। इससे बिस्मिल्ला खाँ की विनम्रता और सीखने की ललक जैसी विशेषताओं का पता चलता है।
प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ की तुलना कस्तूरी मृग से क्यों की गई है?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ अपनी सफलता और उपलब्ध्यिों से संतुष्ट होने वाले व्यक्ति न थे। वे सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर भी अपने कदम ज़मीन पर रखे हुए थे। जिस तरह हिरन अपनी ही कस्तूरी की महक से परेशान होकर उसे जंगल भर में खोजता फिरता है, उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के सुर सम्राट होकर भी यही सोचते थे कि उन्हें सुरों को बरतना अभी तक क्यों नहीं आया।
नौबतखाने में इबादत – प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ अपनी जवानी के दिनों की किन यादों में खो जाते हैं?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ अपनी जवानी के दिनों की निम्नलिखित यादों में खो जाते हैं
- वे अपने युवावस्था में रियाज को कम जुनून को अधिक याद करते हैं।
- वे पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान को याद करते हैं।
- वे गीताबाली एवं अपनी पसंदीदा अभिनेत्री सुलोचना की यादों में खो जाते हैं।
प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ फ़िल्म देखने के अपने शौक को किस तरह पूरा किया करते थे?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ फ़िल्म देखने के जुनूनी थे। उस समय थर्ड क्लास का टिकट छह पैसे का मिलता था। वे दो पैसे मामू से, दो पैसे मौसी से और दो पैसे नानी से लेते थे और घंटों लाइन में लगकर टिकट हासिल किया करते थे। वे सुलोचना की। नई फ़िल्म सिनेमाहाल में आते ही बालाजी मंदिर पर शहनाई बजाने से होने वाली आमदनी लेकर फ़िल्म देखने चल पड़ते थे।
प्रश्न: उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जिस तरह अपने धर्म के प्रति समर्पित थे, उसी प्रकार काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे, तब विश्वनाथ एवं बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और थोड़ी देर के लिए ही सही पर, शहनाई उन्हें समर्पित कर बजाते थे। उनके मन की आस्था बालाजी और बाबा काशी विश्वनाथ में लगी रहती थी।
नौबतखाने में इबादत – प्रश्न: उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?
उत्तर: उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी से असीम लगाव रखते हैं। बाबा विश्वनाथ और बालाजी में उनकी गहन आस्था है। उनके पूर्वजों ने काशी में रहकर शहनाई बजाई । बिस्मिल्ला खाँ काशी में ही रहकर शहनाई बजाना सीखा और संस्कार अर्जित किए। उनके नाना और मामा का जुड़ाव भी काशी से रहा है, इसलिए वे कोशी छोड़कर अन्यत्र नहीं जाना चाहते हैं।
प्रश्न: आज के युवाओं को बिस्मिल्ला के चरित्र से क्या सीख लेनी चाहिए?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ अत्यंत सादगी से जीवन जीते थे। वे सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी घंटों रियाज किया करते थे। वे बनाव-सिंगार पर ध्यान न देकर लक्ष्य प्राप्ति में जुटे रहे। उनके चरित्र से युवाओं को फैशन एवं सिंगार से दूर रहकर सफलता या लक्ष्य प्राप्ति की ओर ध्यान लगाने, परिश्रमी बनने तथा निरंतर अभ्यास करने की सीख लेनी चाहिए।
प्रश्न: ‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में एक ओर सादगीपूर्ण जीवन जीने का संदेश निहित है तो दूसरी ओर निरंतर अभ्यास करने के अलावा धार्मिक कट्टरता त्यागकर धार्मिक उदारता बनाए रखने, दूसरे धर्मों का आदर करने, अभिमान न करने, सफलता मिलने पर भी जमीन पर पाँव टिकाए रखने तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता बनाए रखने का संदेश निहित है।