पतझर में टूटी पत्तियाँ 10 Class Hindi Sparsh Ch 16
प्रश्न: शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर: शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग होता है, क्योंकि गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है इसलिए। वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मज़बूत भी होता है। शुद्ध सोने में किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं होती।
प्रश्न: प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर: प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन्हें कहते हैं जो आदर्शों को व्यवहारिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं। इनका समाज पर गलत प्रभाव पड़ता है क्योंकि ये कई बार आदर्शों से पूरी तरह हट जाते हैं और केवल अपने हानि-लाभ के बारे में सोचते हैं। ऐसे में समाज का स्तर गिर जाता है।
प्रश्न: पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर: पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श वे हैं, जिनमें व्यावहारिकता का कोई स्थान न हो। केवल शुद्ध आदर्शों को महत्त्व दिया जाए। शुद्ध सोने में ताँबे का मिश्रण व्यावहारिकता है, तो इसके विपरीत शुद्ध सोना शुद्ध आदर्श है।
प्रश्न: लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर: दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने से वह दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है। जापान के लोग पूर्ण रूप से प्रतिस्पर्धा में हैं, वे किसी भी तरीके से उन्नति करके अमेरिका से आगे निकलना चाहते हैं। इसलिए उनका मस्तैिष्क सदा तनावग्रस्त रहता है। इस कारण वे मानसिक रोगों के शिकार होते हैं। लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगाने की बात इसलिए कही क्योंकि वे तीव्र गति से प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन में पूरा करना चाहते हैं इसलिए उनका दिमाग भी तेज़ रफ्तार से स्पीड इंजन की भाँति सोचता है।
प्रश्न: जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर: जापानी में चाय पीने की विधि को ‘चा-नो-यू‘ कहते हैं।
प्रश्न: जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर: जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वह स्थान पर्णकुटी जैसा सजा होता है। वहाँ बहुत शांति होती है। प्राकृतिक ढंग से सजे हुए इस छोटे से स्थान में केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं। यहाँ अत्यधिक शांति का वातावरण होता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए:
प्रश्न: शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर: यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं। जीवन में आदर्श के साथ व्यावहारिकता भी आवश्यक है, क्योंकि व्यावहारिकता के समावेश से आदर्श सुंदर व मजबूत हो जाते हैं।
प्रश्न: चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर: चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से की। यह सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूर्ण हुई। चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, दूसरे कमरे से चाय के बर्तन लाना, उन्हें तौलिए से पोंछना व चाय को बर्तनों में डालने आदि की सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग अर्थात् बड़े ही आराम से, अच्छे व सहज ढंग से की।
प्रश्न: ‘टी-सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर: ‘टी-सेरेमनी’ में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता है। ऐसा शांति बनाए रखने के लिए किया जाता है।
प्रश्न: चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर: चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि जैसे उसके दिमाग की गति मंद हो गई हो। धीरे-धीरे उसका दिमाग चलना बंद हो गया हो उसे सन्नाटे की आवाजें भी सुनाई देने लगीं। उसे लगा कि मानो वह अनंतकाल से जी रहा है। वह भूत और भविष्य दोनों का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहा हो। उसे वह पल सुखद लगने लगे।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए:
प्रश्न: गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर: वास्तव में गांधी जी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी। वे व्यावहारिकता को पहचानते थे, उसकी कीमत पहचानते थे, और उसकी कीमत जानते थे। वे कभी भी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे, बल्कि व्यावहारिकता को आदर्शों पर चलाते थे। वे सोने में ताँबा नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन व दांडी मार्च जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए। भारतीयों ने गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त होकर उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। इसी अद्भुत क्षमता के कारण ही गांधी जी देश को आज़ाद करवाने में सफल हुए थे।
प्रश्न: आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: आज व्यावहारिकता का जो स्तर है, उसमें आदर्शों का पालन नितांत आवश्यक है। व्यवहार और आदर्श दोनों का संतुलन व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है। ‘कथनी और करनी’ के अंतर ने समाज को आदर्श से हटाकर स्वार्थ और लालच की ओर धकेल दिया है। सत्य, अहिंसा, परोपकार जैसे मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। शाश्वत मूल्य वे होते हैं, जो पौराणिक समय से चले आ रहे हों, वर्तमान में भी जो महत्त्वपूर्ण हों तथा भविष्य में भी जो उपयोगी हों। ये प्रत्येक काल में समान रहे। युग, स्थान तथा साल का इन पर कोई प्रभाव न पड़े। वर्तमान समय में भी इन शाश्वत मूल्यों की प्रासंगिकता बनी हुई है। सत्य और अहिंसा के बिना राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता। शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देश-प्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। ये शाश्वत मूल्य युगों-युगों तक कायम रहेंगे।