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10th Hindi NCERT CBSE Books

पतझर में टूटी पत्तियाँ: 10th Hindi Sparsh Gadya Khand Ch 16

पतझर में टूटी पत्तियाँ 10 Class Hindi Sparsh Ch 16 [Page 2]

प्रश्न: ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: शुद्ध सोना आदर्शों का प्रतीक है और ताँबा व्यावहारिकता का प्रतीक है। गाँधी जी व्यावहारिकता को ऊँचा स्तर देकर आदर्शों के स्तर तक लेकर जाते थे अर्थात् ताँबे में सोना मिलाते थे। वे नीचे से ऊपर उठाने का प्रयास करते थे न कि ऊपर से नीचे गिराने का। इसलिए कई लोगों ने उन्हें ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ भी कहा । वास्तव में वे व्यावहारिकता से परिचित थे, लोगों की भावनाओं को पहचानते थे इसलिए वे अपने विलक्षण आदर्श चला सके और पूरे देश को अपने पीछे चलाने में कामयाब रहे।

प्रश्न: ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?

उत्तर: ‘गिन्नी को सोना’ पाठ के आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं।

प्रश्न: लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर: लेखक के मित्र ने मानसिक रोग का कारण बताया कि जापानियों ने अमरीका की आर्थिक गति से प्रतिस्पर्धा करने के कारण अपनी दैनिक दिनचर्या की गति बढ़ा दी । यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। वे एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं, इस कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं। लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह कार्य नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया गया तो उनकी मानसिक संतुलन बिगड़ जाना अवश्यंभावी है।

प्रश्न: लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इसका आशय है कि लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है। वर्तमान में जीना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और जीवन में उन्नति होती है। यदि हम भूतकाल के लिए पछताते रहेंगे या भविष्य की योजनाएँ ही बनाते रहेंगे, तो दोनों बेमानी या निरर्थक हो जाएँगे। हम भूतकाल से शिक्षा लेकर तथा भविष्य की योजनाओं को वर्तमान में ही परिश्रम करके कार्यान्वित कर सकते हैं। भगवान कृष्ण ने ‘गीता’ में भी वर्तमान में ही जीने का संदेश दिया है ताकि मनुष्य तनाव रहित मुक्त रहकर स्वस्थ तथा खुशहाल जीवन बिता सके।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

प्रश्न: समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

उत्तर: इसका आशय है कि समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है, तो वास्तव में यह धरोहर आदर्शवादी लोगों की ही दी हुई है। जैसे – गांधी जी का अहिंसा और सत्याग्रह का संदेश, राजा हरीशचंद्र की सत्यवादिता तथा भगतसिंह की शहादत आदि अनेक हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। हम इनके दिखाए रास्ते पर चलते हैं और इनके गुणों को आचरण में लाते हैं।

प्रश्न: जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी त्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।

उत्तर: जब आदर्श और व्यवहार में से लोग व्यावहारिकता को प्रमुखता देने लगते हैं और आदर्शों को भूल जाते हैं तब आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है। ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टक’ लोगों के जीवन में स्वार्थ व अपनी लाभ-हानि की भावना उजागर हो जाती है। ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसमें आदर्श एवं व्यवहार का संतुलन होता है लेकिन यदि आज के समाज को ध्यान में रखे तो इस शब्द में व्यावहारिकता को इतना महत्त्व दे दिया जाता है कि उसकी आदर्शवादी विचारधारा अदृश्य होकर केवल व्यावहारिकता के रूप में ही दिखाई देने लगती है। आदर्श व्यवहार के उस स्तर पर जाकर अपनी गुणवत्ता खो देता है और धीरे-धीरे आदर्श मूल व्यवहार के हाथों समाप्त हो जाता है।

प्रश्न: हमारे जीका की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।

उत्तर: जापान के लोगों के जीवन की गति बहुत अधिक बढ़ गई है इसलिए वहाँ लोग चलते नहीं, बल्कि दौड़ते हैं। कोई बोलता नहीं है, बल्कि जापानी लोग बकते हैं और जब ये अकेले होते हैं, तो स्वयं से ही बड़बड़ाने लगते हैं अर्थात् स्वयं से ही बातें करते रहते हैं।

प्रश्न: अभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।

उत्तर: लेखक जब अपने मित्रों के साथ जापान की ‘टी-सेरेमनी में गया तो चाजीन ने झुककर उनका स्वागत किया। लेखक को वहाँ का वातावरण बहुत शांतिमय प्रतीत होता है। लेखक देखता है कि वहाँ की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से की गईं। चाजीन द्वारा लेखक और उसके मित्र का स्वागत करना, अँगीठी जलाना, चायदानी रखना, बर्तन लगाना, उन्हें तौलिए से पोंछना, चाय डालना आदि सभी क्रियाएँ मन को भाने वाली थीं। यह देखकर लेखक भाव-विभोर हो गया। वहाँ की गरिमा देखकर लगता था कि जयजयवंती राग का सुर गूंज रहा हो।

प्रश्न: दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए – व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत

उत्तर:

शब्द

व्यावहारिकता
आदर्श
सूझबूझ
विलक्षण
शाश्वत

वाक्य प्रयोग

सिद्धांत और व्यावहारिकता के मेल से व्यक्ति का व्यवहार अच्छा बन जाता है।
गांधी जी अपने आदर्श बनाए रखते थे।
सूझबूझ से काम करने पर मुश्किल आसान हो जाती है।
सुभाषचंद्र बोस विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
प्रकृति परिवर्तनशील है, यह शाश्वत नियम है।

प्रश्न: ‘लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा – लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए:

  1. माता-पिता = ………
  2. पाप-पुण्य = ………
  3. सुख-दुख = ………
  4. रात-दिन = ………
  5. अन्न-जल = ………
  6. घर-बाहर = ………
  7. देश-विदेश = ………

उत्तर:

  1. माता-पिता = माता और पिता
  2. पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
  3. सुख-दुख = सुख और दुख
  4. रात-दिन = रात और दिन
  5. अन्न-जल = अन्न और जल
  6. घर-बाहर = घर और बाहर
  7. देश-विदेश = देश और विदेश

प्रश्न: नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए:

  1. सफल = …………………
  2. विलक्षण = …………………
  3. व्यावहारिक = …………………
  4. सजग = …………………
  5. आदर्शवादी = …………………
  6. शुद्ध = …………………

उत्तर:

  1. सफल = सफलता
  2. विलक्षण = विलक्षणता
  3. व्यावहारिक = व्यावहारिकता
  4. सजग = सजगता
  5. आदर्शवादी = आदर्शवादिता
  6. शुद्ध = शुद्धता

प्रश्न: नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए:

  1. शुद्ध सोना अलग है।
  2. बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।

दिए गए वाक्यों में “सोना” का क्या अर्थ है?

ऊपर: पहले वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं।

प्रश्न: दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए: उत्तर, कर, अंक, नग

उत्तर:

  1. उत्तर – सड़क की उत्तर दिशा में डाकखाना है।
    मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम है।
  2. कर – हमें आय कर चुका कर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।
    अध्यापक को दखते ही मैंने कर बद्ध प्रणाम किया।
  3. अंक – माँ ने सोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
    एक अंक की कुल 4 संख्याएँ हैं।
  4. नग – हिमालय को नग राज कहा जाता है।
    उसके घर में कीमती नग जड़ा है।

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