पतझर में टूटी पत्तियाँ 10 Class Hindi Sparsh Ch 16 [Page 3]
प्रश्न: नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए:
- क. अँगीठी सुलगायी।
ख. उस पर चायदानी रखी। - क. चाय तैयार हुई।
ख. उसने वह प्यालों में भरी। - क. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
ख. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर:
- अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
- चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
- बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।
प्रश्न: नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए:
- क. चाय पीने की यह एक विधि है।
ख. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं। - क. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
ख. उसमें पानी भरा हुआ था। - क. चाय तैयार हुई।
ख. उसने वह प्यालों में भरी।
ग. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर:
- चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
- उस बर्तन में पानी भरा था जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था।
- जब चाय तैयार हुई तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई।
प्रश्न: पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र – एक छह मंजिली इमारत की छत पर झोपड़ीनुमा कमरा है, जिसकी दीवारें दफ़्ती की बनी है। फ़र्श पर चटाई बिछी है। वातावरण अत्यंत शांतिपूर्ण है। बाहर ही एक बड़े से बेडौल मिट्टी के बरतन में पानी रखा है। लोग यहाँ हाथ-पाँव धोकर अंदर जाते हैं। अंदर बैठा चाजीन झुककर सलाम करता है। बैठने की जगह की ओर इशारा करता है और चाय बनाने के लिए अँगीठी जलाता है। उसके बर्तन अत्यंत साफ़-सुथरे और सुंदर हैं। वातावरण इतना शांत है कि चायदानी में उबलते पानी की आवाज साफ़ सुनाई दे रही है। वह बिना किसी जल्दबाजी के चाय बनाता है। वह कप में दो-तीन घूट भर ही चाय देता है जिसे लोग धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेकर एक डेढ़ घंटे में पीते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: शुद्ध सोने का उपयोग कम किया जाता है, क्यों?
उत्तर: शुद्ध सोना मिलावट रहित होता है। इसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं होती है। यह नरम लचीला तथा कम कठोर | होता है। इसमें चमक भी कम होती है। इसकी शुद्धता 24 कैरेट होती है तथा इससे आभूषण नहीं बनाए जाते हैं।
प्रश्न: गिन्नी के सोने का अधिक उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर: गिन्नी का सोना शुद्ध सोने से अलग होता है। इसमें कुछ अंश तक ताँबे की मिलावट होती है जिससे यह अधिक चमकदार और मज़बूत बन जाता है। इसकी शुद्धता 22 कैरेट होती है। इसका उपयोग आभूषण बनवाने के लिए होता है।
प्रश्न: ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर: ‘प्रैक्टिकल आइडियालस्टि’ वे हैं जो अपने आदर्शों में व्यावहारिकता रूपी ताँबे का मेल करते हैं और चलाकर दिखाते हैं। वे आदर्श और व्यावहारिकता का समन्वय करके चलते हैं।
प्रश्न: गांधी जी प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गांधी जी भली-भाँति जानते थे कि शुद्ध आदर्शों को आचरण में नहीं लगाया जा सकता है फिर भी उनकी दृष्टि आदर्श से हटी नहीं। उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता किए बिना व्यावहारिक आदर्शवाद को अपनाया तथा मर्यादित एवं श्रेष्ठ व्यवहार करते हुए जीवन बिताया।
प्रश्न: व्यवहारवादी लोगों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर: व्यवहारवादी लोग अपनी उन्नति और अपने लाभ-हानि को अधिक महत्त्व देते हैं। वे आदर्शों और मानवीय मूल्यों को महत्त्व नहीं देते हैं। यही नहीं वे समाज के अन्य लोगों की उन्नति या कल्याण की चिंता नहीं करते हैं। उनका व्यवहार लाभ-हानि की गणना से प्रभावित रहता है।
प्रश्न: समाज के उत्थान में आदर्शवादियों का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: हर समाज के कुछ शाश्वत मूल्य होते हैं। इनमें सत्य, त्याग, प्रेम, सहभागिता परोपकार आदि प्रमुख हैं। आदर्शवादी लोग ही अपने व्यवहार द्वारा इन मूल्यों को बनाए रखते हैं और आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित कर जाते हैं जिससे समाज में ये मूल्य बने रहते हैं।
प्रश्न: ‘व्यवहारवाद’ समाज के लिए किस प्रकार हानिकारी है?
उत्तर: ‘व्यवहारवाद’ अर्थात् ‘लाभ-हानि’ की गणना करके किया गया व्यवहार। इसे अवसरवादिता भी कहा जा सकता है। मनुष्य जब अपने लाभ, उन्नति और भलाई के लिए आदर्शों को त्याग दे तब मानवीय मूल्यों का पतन हो जाता है। ऐसा व्यवहारवाद समाज को पतनोन्मुख बनाता है।
प्रश्न: लेखक के मित्र के अनुसार जापानी किस रोग से पीड़ित हैं और क्यों?
उत्तर: लेखक के मित्र के अनुसार जापानी मानसिक रुग्णता से पीड़ित हैं। इसका कारण उनकी असीमित आकांक्षाएँ, उनको पूरा करने के लिए किया गया भागम-भाग भरा प्रयास, महीने का काम एक दिन में करने की चेष्टा, अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र से प्रतिस्पर्धा आदि है।
प्रश्न: ‘टी-सेरेमनी’ की चाय का लेखक पर क्या असर हुआ?
उत्तर: ‘टी-सेरेमनी’ में चाय पीते समय लेखक पहले दस-पंद्रह मिनट उलझन में पड़ा। फिर उसके दिमाग की रफ्तार धीमी होने लगी। जो कुछ देर में बंद-सी हो गई। अब उसे सन्नाटा भी सुनाई दे रहा था। उसे लगने लगा कि वह अनंतकाल में जी रहा है।
प्रश्न: ‘जीना इसी का नाम है’ लेखक ने ऐसा किस स्थिति को कहा है?
उत्तर: ‘जीना इसी का नाम है’ लेखक ने ऐसा उस स्थिति को कहा है जब वह भूतकाल और भविष्य दोनों को मिथ्या मानकर उन्हें भूल बैठा। उसके सामने जो वर्तमान था उसी को उसने सच मान लिया था। टी-सेरेमनी में चाय पीते-पीते उसके दिमाग से दोनों काले उड़ गए थे। वह अनंतकाल जितने विस्तृत वर्तमान में जी रहा था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: भारत में भी लोगों की जिंदगी की गतिशीलता में खूब वृद्धि हुई है। इसके कारण और परिणाम का उल्लेख ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर: अत्यधिक सुख-सुविधाएँ पाने की लालसा, भौतिकवादी सोच और विकसित बनने की चाहत ने भारतीयों की जिंदगी की गतिशीलता में वृधि की है। भारत विकास के पथ पर अग्रसर है। गाँव हो या महानगर, प्रगति के लिए भागते दिख रहे हैं। विकसित देशों की भाँति जीवन शैली अपनाने के लिए लोगों की जिंदगी में भागमभाग मची है। लोगों के पास अपनों के लिए भी समय नहीं बचा है। यहाँ के लोगों की स्थिति भी जापानियों जैसी हो रही है जो चलने की जगह दौड़ रहे हैं, बोलने की जगह बक रहे हैं और इससे भी दो कदम आगे बढ़कर मनोरोगी होने लगे हैं।
प्रश्न: ‘झेन की देन’ पाठ से आपको क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत कराता है। पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोग की चर्चा करते हुए वहाँ की ‘टी-सेरेमनी’ के माध्यम से मानसिक तनाव से मुक्त होने का संकेत करते हुए यह संदेश दिया है कि अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना। इसके मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।