अपठित गद्यांश Hindi Unseen Passages IV [03]
मनुष्य का अपने कर्म पर अधिकार है। वह कर्म के अनुसार फल प्राप्त करता है। अच्छे कर्म करने से फल भी अच्छा मिलता है। बुरे कर्म का परिणाम बुरा होता है। कर्म करना बीज बोने के समान है। जैसा बीज होता है वैसे ही पेड़ और वैसे ही फल होते हैं। एक कहावत है – ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय?’ इसलिए बड़े-से-बड़े अपराधी अंततः बुरी मौत मरते हैं। जो बेईमानी से धन कमाते हैं, उनके बच्चे बेईमान और दुश्चरित्र बनते जाते हैं। उनकी बुराई का परिणाम उन्हें मील ही जाता है। हमारा व्यक्त्तित्व हमारे कर्मों का ही प्रतिबिंब है। अगर हम आजीवन कुछ पाने के लिए भागदौड़ करते हैं तो इससे हमारा जीवन ही अशांत होता है। एक छात्र परिश्रम की राह पर चलता है तो उसे सफलता तथा संतुष्टि का फल प्राप्त होता है। दूसरा छात्र नकल और प्रवंचना का जीवन जीता है। उसे जीवन भर चोरों, ठगों और धोखेबाजों के बीच रहना पड़ता है। दुष्ट लोगों के बीच जीना भी तो एक दंड है, अशांति है। अतः मनुष्य को पुण्य कर्म करने चाहिए। इसी से मन से सच्चा सुख जागता है, सच्ची शांति मिलती है।
प्रश्न:
(क) मनुष्य का किस पर अधिकार है?
- कर्म पर
- फल पर
- परिणाम पर
- इनमें से किसी पर नहीं
(ख) कर्म को किसके समान माना गया है?
- फल के समान
- फूल के समान
- पेड़ के समान
- बीज बोने के समान
(ग) बेईमानी से धन कमाने वालों के साथ क्या होता है?
- बुरी मौत मरते हैं
- बच्चे बेईमान और दुश्चरित्र बनते हैं
- बुरे काम का बुरा परिणाम होता है
- इनमें से कोई नहीं
(घ) परिश्रम की राह पर चलने वाला छात्र क्या करता है?
- सफलता व संतुष्टि
- परिणाम
- खुशी का जीवन बिताता है
- अशांत जीवन बिताता है
(ड़) नकल व प्रवचना का जीवन जीने वाले छात्र को क्या सहना पड़ता है?
- अशांति भरा जीवन
- चोरों और ठगों के बीच रहना पड़ता है
- कष्टों भरा जीवन जीना पड़ता है
- उपरोक्त सभी
(च) हमारे कर्मों का प्रतिबिंब क्या है?
- कर्म
- चरित्र
- जीवन
- हमारा व्यक्तित्व
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