अपठित गद्यांश Hindi Unseen Passages IV [06]
परिश्रम उन्नति का द्वार है। मनुष्य परिश्रम के सहारे ही जंगली अवस्था से वर्तमान विकसित अवस्था तक पहुँचा है। उसी के सहारे उसने अन्न उपजाया, वस्त्र बनाए, घर, मकान, भवन, बाँध, पुल, सड़कें बनाईं। तकनीक का विकास किया, जिसके सहारे आज यह जगमगाती सभ्यता चल रही है। परिश्रम केवल शरीर की क्रियाओं का ही नाम नहीं है। मन तथा बुद्धि से किया गया परिश्रम भी परिश्रम कहलाता है। हर श्रम में बुद्धि तथा विवेक का पूरा योग रहता है। परिश्रम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है। परिश्रम करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसे मन-ही-मन प्रसन्नता रहती है कि उसने जो भी भोगा, उसके बदले उसने कुछ कर्म भी किया।
परिश्रम व्यक्ति का जीवन स्वाभिमान से पूर्ण होता है, वह अपने भाग्य का निर्माता होता है। उसमें आत्म-विश्वास होता है। परिश्रमी व्यक्ति किसी भी संकट का बहादुरी से सामना करता है तथा उससे संघर्ष करता है।
परिश्रम कामधेनु है जिससे मनुष्य की सब इच्छाएँ पूरी हो सकती हैं। मनुष्य को करते दम तक परिश्रम का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। जो परिश्रम से इनकार करता है, वह जीवन में पिछड़ जाता है।
प्रश्न:
(क) उन्नति का द्वार क्या है?
- परिश्रम
- मन
- बुद्धि
- विवेक
(ख) परिश्रम का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
- मन तथा बुद्धि पर नियंत्रण
- बुद्धि तथा विवेक का पूरा योग रहता है
- लक्ष्य प्राप्ति में सहायक
- इनमें से कोई नहीं
(ग) मनुष्य ने परिश्रम से किसका निर्माण किया?
- घर, मकान
- भवन, बाँध
- पुल, सड़कें
- उपरोक्त सभी
(घ) परिश्रमी व्यक्ति का जीवन कैसा होता है?
- संघर्ष से भरा
- स्वाभिमान से भरा
- आत्मविश्वास से भरा
- मुसीबतों से घिरा
(ड़) परिश्रम को किसके समान माना गया है?
- कल्पवृक्ष के समान
- सब इच्छाएँ पूरी करने वाला
- कामधेनु के समान
- इनमें से कोई नहीं
(च) परिश्रम का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
- लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक
- खुद प्रदान करने में सहायक
- मन को प्रसन्नता प्रदान करने में सहायक
- उपरोक्त सभी।
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