अपठित गद्यांश Hindi Unseen Passages IV [07]
परोपकार का शाब्दिक अर्थ है – दूसरों का भला। दूसरों की भलाई के बारे में सोचना तथा उसके लिए कार्य करना महान गुण है। यदि सभी अपने गुणों को अपनी मुट्ठियों में कैद कर लें तो यह सृष्टि-चक्र पल-भर के लिए भी न चले। वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लिए फल धारण करते हैं। नदियाँ भी अपना जल स्वयं नहीं पीतीं। परोपकारी मनुष्य संपत्ति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं। मानव-जीवन भी एक-दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है। जब कोई व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से किसी घायल की सेवा करता है तो उस क्षण वह मनुष्य नहीं है। अपने प्रियजनों के लिए कुछ करना अलग बात है। परंतु अपने-पराए सबके लिए कर्म करना सच्चा परोपकार है। भारत में परोपकारी महापुरुषों की कमी नहीं है। यहाँ दधीचि जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपनी जाती के लिए अपने शरीर की हड्डियाँ दान में दे दीं। बुद्ध, महावीर, अशोक, गाँधी, अरविंद जैसे महापुरुषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं। परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हँसमुख रहता है। वह पूजा के योग्य हो जाता है।
प्रश्न:
(क) परोपकार का क्या अर्थ है?
- पर + उपकार
- दूसरों का भला
- दूसरों की सहायता
- दूसरों के बारे में सोचना
(ख) परोपकार करने वाले प्राकृतिक उपादान कौन-से बताए गए हैं?
- वृक्ष
- नदियाँ
- परोपकारी मनुष्य
- उपरोक्त सभी
(ग) सच्चा परोपकार क्या है?
- अपने-पराए के लिए कर्म करना
- स्वार्थी बनना
- स्वार्थ चिन्तन करके कर्म करना
- सहयोग
(घ) परोपकार करके महान बनने वाले महापुरुषों के नाम हैं?
- महात्मा बुद्ध
- महावीर
- अशोक, गाँधी
- उपरोक्त सभी
(ड़) परोपकारी व्यक्ति कैसे रहता है?
- प्रसन्न
- निर्मल
- हँसमुख
- उपरोक्त सभी
(च) परोपकारी मनुष्य का जीवन किस प्रकार का होता है?
- संपत्ति का संचय दूसरों के लिए
- जीवन दूसरों के लिए
- निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा
- उपरोक्त सभी
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