अपठित काव्यांश Hindi Unseen Passages IV [05]
रात:
पर मैं जी रहा हूँ निडर
जैसे कमल
जैसे पंथ
जैसे सूर्य
क्योंकि
कल भी हम खिलेंगे
हम चलेंगे
हम उगेंगे
और
वे सब साथ होंगे
आज जिनको रात ने भटका दिया है
प्रश्न:
- कविता में ‘रात’ जीवन की किस सहज स्थिति का द्योतन करती है?
- कवि ने रात से न डरने वाले किन-किन पदार्थों को चुना है?
- क्या सोचकर कमल, पंथ और सूर्य रात के अँधेरे से नहीं डरते?
- कमल, पंथ और सूर्य किस आशा और विश्वास में रात बीतने की पतिक्षा करते है?
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