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Unseen Passages

अपठित काव्यांश Hindi Unseen Verses And Passages

अपठित काव्यांश Hindi Unseen Passages IV [07]

हारा हूँ सौ बार
गुनाहों से लड़-लड़कर

लेकिन बारंबार लड़ा हूँ
मैं उठ-उठ कर,

इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा
मैंने अपने जीवन को इस तरह उबारा।

डूबा हूँ हर रोज
किनारे तक आ-आकर,

लेकिन मैं हर रोज
उगा हूँ जैसे दिनकर,

इससे मेरी असफलता भी मुझसे हारी
मैंने अपनी सुंदरता इस तरह सँवारी।

प्रश्न:

(क) अनेक बार गुनाहों से हारकर भी कवि अपने हर गुनाह को कैसे जीत पाया?

  1. संघर्ष करके
  2. सामना करके
  3. बार-बार प्रयास करके
  4. बार-बार लड़कर

(ख) कवि ने अपनी असफलता पर कैसे विजय प्राप्त की?

  1. बार-बार संघर्ष करके
  2. विपरीत परिस्थितियों में भी हार न मानकर
  3. असफलता मिलने पर पुनः संघर्ष करके
  4. असफल होने पर हार नहीं मानी

(ग) ‘किनारे तक आ-आकर डूबने’ से कवि का क्या आशय है?

  1. सफलता के निकट पहुँचकर असफल हो जाना
  2. असफल होना
  3. पुनः प्रयास करना
  4. बार-बार असफल होना

(घ) कवि ने अपना जीवन उबारने और सँवारने का क्या रहस्य बताया है?

  1. निरंतर संघर्ष करते रहना
  2. निरन्तर प्रयास करते रहने में सफलता मिली है
  3. लगातार परिश्रम करते रहना
  4. बार-बार हार मिलने पर पुनः प्रयास करते रहने से

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2 comments

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