अपठित काव्यांश Hindi Unseen Passages IV [09]
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए-से
ऊँघते अनमने जंगल।
झाड़ ऊँचे और नीचे
चुप खड़े हैं आँख मींचे,
घास चुप है, काश चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है;
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए-से
ऊँघते, अनमने जंगल!
सड़े पत्ते, गले पत्ते
हरे पत्ते, गले पत्ते
वन्य पथ को ढक रहे-से
चंपक दल में पले पत्ते,
चलो इन पर चल सको तो
दलो इनको दल सको तो
ये घिनौने घने जंगल,
नींद में डूबे हुए से
ऊँघते, अनमने जंगल।
अटपटी उलझी लताएँ,
डालियों की खींच लाएँ,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कँपाएँ,
साँप-सी काली लताएँ,
बला की पाली लताएँ,
लताओं के बने जंगल,
नींद में डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
प्रश्न:
(क) सतपुड़ा के जंगल के अनमने होने का क्या कारण है?
- आँखें मींचना
- चुप खड़ा होना
- नींद में डूबना, ऊँघना
- घना होना
(ख) ‘धँस न पाती हवा’ क्यों नहीं धँस पाती?
- घने वृक्ष होने के कारण
- झाड़ियों के कारण
- घने जंगलों के कारण
- उलझी लताओं के कारण
(ग) जंगल को घिनौना क्यों कहा गया है?
- ऊँची झाड़ियों के कारण
- सड़े-गले पत्तों से ढके होने के कारण
- चंपक दल में जले पत्ते के कारण
- उपरोक्त सभी
(घ) ‘नींद में डूबे हुए-से’ के बार-बार प्रयोग का क्या अर्थ है?
- जंगलों की सघनता बताने के लिए
- अटपटी व उलझी लताओं से युक्त होने के कारण
- दलदल से साँप-सी काली लताओं के कारण
- घने जंगल होने के कारण
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